Sunday, August 9, 2009

Yamuna Kwach यमुना कवच

यमुना कवच
Yamuna Kwach

यमुना कवच

सौभरि उवाच:

ध्यानम्

यमुनायाश्च कवचं सर्वक्षाकरं नृणाम् । चतुष्पदार्थदं साक्षाच्छृणु राजन् महामते ॥१॥
कृष्णां चतुर्भुजां पुण्डरीकदलेक्षणाम् । रथस्थां सुन्दरीं ध्यात्वा धारयेत कवचं तत: ॥२॥

कवच

स्नात: पूर्वमुखो मौनी कृतसंध्य: कुशासने । कुशैर्बद्धशिखो विप्र: पठेद् वै स्वस्तिकासन:॥३॥
यमुना मे शिर: पातु कृष्णा नेत्रद्वयं सदा । श्यामा भ्रूभङ्गदेशं च नासिकां नाकवासिनी ॥४॥
कपोलौ पातु मे साक्षात् परमानन्दरूपिणी । कृष्णवामांससम्भूता पातु कर्णद्वयं मम ॥५॥
अधरौ पातु कालिन्दी चिबुकं सूर्यकन्यका । यमस्वसा कन्धरां च हृदयं मे महानदी ॥६॥
कृष्णप्रिया पातु पृष्ठं तटिनी मे भुजद्वयम् । श्रोंणीतटं च सुश्रोणी कटिं मे चारुदर्शना ॥७॥
ऊरुद्वयं तु रम्भोरूर्जानुनी त्वङ्घ्रिभेदिनी । गुल्फौ रासेश्वरी पातु पादौ पापापहारिणी ॥८॥
अन्तर्बहिरधश्चोर्ध्वं दिशासु विदिशासु च । समन्तात् पातु जगत: परिपूर्णतमप्रिया ॥९॥

फलश्रुति

इदं श्रीयमुनायाश्च कवचं पामाद्भुतम् । दशवारं पठेद् भक्त्या निर्धनो धनवान् भवेर् ॥१०॥
त्रिभिर्मासै: पठेद् धिमान् ब्रमाचारी मिताशन: । सर्वराज्याधिपत्यत्वं प्राप्यते नात्र संशय: ॥११॥
दशोत्तशतं नित्यं त्रिमासावधि भक्तित: । य: पठेत् प्रयतो भूत्वा तस्य किं किं न जायते ॥१२॥
य: पठेत् प्रातरुत्थाय सर्वतीर्थफलं लभेत् । अन्ते व्रजेत् परं धाम गोलोकं योगिदुर्भम् ॥१३॥

(गर्गसंहिता, माधुर्य खण्ड, १६। १२-१४)

॥ इति श्रीगर्गसंहिता माधुर्यखण्डे श्रीसौभरि-मांधाता संवादे यमुना कवचम् सम्पूर्णम् ॥


Translation

सौभरि बोले

ध्यान

महामते नरेश ! यमुनाजीका कवच मनुष्योकी सब प्रकारसे सक्षा कसनेवाला तथा साक्षात् चारों पदार्थोंको देनेवाला है, तुम इसे सुनो – यमुनाजीके चार भुजाएँ है । वे श्यामा (श्यामवर्णा एवं षोडश वर्षकी अवस्थासे युक्त) है । उनके नेत्र प्रफल्ल कमलदलके समान सुन्दर एवं विशाल है । वे परम सुन्दर है और दिव्य रथपर बैठी हुई हैं । उनका ध्यान करके कवच धारण करे ॥

स्नान करके पूर्वाभिमुख हो मौनभावसे कुशासनपर बैठे और कुशोंद्वारा शिखा बाँधकर संध्या-वन्दन करनेके अनन्तर ब्रह्मण (अथावा द्विजमात्र) स्वस्तिकासनसे स्थित हे कवचका पाठ करे ।

कवच

यमुना मेरे मस्तककी रक्षा करे और कृष्णा सदा दानों नेत्रोंकी । श्यामा भ्रूभंग-देशकी और नाकवासिनी नासिकाकी रक्षा करें । साक्षात् परमानन्दरूपिणी मेरे दोनों कपोलोंकी रक्षा करें । कृष्णवामांससम्भूता (श्रीकृष्णके बायें कंधेसे प्रकट हुई वे देवी) मेरे दोनों कानोंका संरक्षण करें । कालिन्दी अधरोंकी और सूर्यकन्या चिबुक (ठोढी) की रक्षा करें । यमस्वसा (यमराजकी बहिन) मेरी ग्रीवाकी और महानदी मेरे हृदयकी रक्षा करें । कृष्णप्रिया पृष्ठ –भागका और तटिनी मेरी दोनों भुजाओंका रक्षण करें । सुश्रोणी श्रोणीतट (नितम्ब) की और चारुदर्शना मरे कटिप्रदेशकी रक्षा करें । रम्भरू दोनों ऊरुओं (जाँघो) की और अङ्घ्रिभेदिनी मेरे दोनों घुटनोंकी रक्षा करें । रासेश्वरी गुल्फों (घट्ठयों) का और पापापहारिणी पादयुगलका त्राण करें । परिपूर्णतमप्रिया भीतर-बहार, नीचे-ऊपर तथा दिशाओं और विदिशाओंमें सब ओरसे मेरी रक्षा करें ॥

फलश्रुति

यह श्रीयमुनाका परम अद्भुत कवच है । जो भक्तिभावसे दस इसका पाठ करता है, वह निर्धन भी धनवान् हो जाता है । जो बुद्धिमान् मनुष्य ब्रह्मचर्यके पालनपूर्वक परिमित आहारका सेवन करते हुए तीन मासतक इसका पाठ करेगा, बह सम्पूर्ण राज्योंका आधिपत्य प्राप्त कंर लेगा, इसमें संशय नहीं है । जो तीन महीनकी अवधितक प्रतिदिन भक्तिभावसे शुद्धचित्त हो इसका एक सौ दस बार पाठ करगा, उसको क्या-क्या नहीं मिल जायगा ? जो प्रात:काल उठकर इसका पाठ करेगा, उसे सम्पूर्ण तीर्थोमें स्नानका फल मिल जायगा तथा अन्तमें वह योगिदुर्लभ परमधाम गोलोकमें चला जायगा ॥

॥ इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें माधुर्यखण्डके अन्तर्गत श्रीसौभरि-मांधाताके संवादमे यमुना कवच पुरा हुआ ॥



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