Friday, September 11, 2009

Nava Durga Stuti Mantra for Kundalini (कुण्डलिनी)

Nava Durga Stuti (Mantra) for Kundalini


Please follow these mantra in the presence of a Guru who will help you when things go wrong. Wakening of the Kundalini can be fatal, please do not try this alone. You need a Guru to help you to reverse the effect. Please visit Wikipedia article on Kundalini.

Further more I cannot confirm the source of these Mantra. If anything goes wrong I shall not be held responsible since wakening of the Kundalini has proven dangerous in some cases as the disciple was not following the right path. This is given here for information only.

Jai Maa Durga


शैलपुत्री (मूलाधार चक्र)

ध्यान:-

वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्॥

पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।

पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥

प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।

कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥

स्तोत्र:-

प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्।

धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्।

सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।

भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।

भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥

कवच:-

ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी।

हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥

श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।

हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥

फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा।

ब्रह्मचारिणी (स्वाधिष्ठान चक्र)

दधानापरपद्माभ्यामक्षमालाककमण्डलम्।

देवी प्रसीदतुमयिब्रह्मचारिणयनुत्तमा॥

ध्यान:-

वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

जपमालाकमण्डलुधरांब्रह्मचारिणी शुभाम्।

गौरवर्णास्वाधिष्ठानस्थितांद्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।

धवल परिधानांब्रह्मरूपांपुष्पालंकारभूषिताम्।

पदमवंदनांपल्लवाधरांकातंकपोलांपीन पयोधराम्।

कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखींनिम्न नाभिंनितम्बनीम्।।

स्तोत्र:-

तपश्चारिणीत्वंहितापत्रयनिवारणीम्।

ब्रह्मरूपधराब्रह्मचारिणींप्रणमाम्यहम्।।

नवचग्रभेदनी त्वंहिनवऐश्वर्यप्रदायनीम्।

धनदासुखदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

शंकरप्रियात्वंहिभुक्ति-मुक्ति दायिनी

शांतिदामानदाब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्।

कवच:-

त्रिपुरा मेहदयेपातुललाटेपातुशंकरभामिनी

अर्पणासदापातुनेत्रोअधरोचकपोलो॥

पंचदशीकण्ठेपातुमध्यदेशेपातुमाहेश्वरी

षोडशीसदापातुनाभोगृहोचपादयो।

अंग प्रत्यंग सतत पातुब्रह्मचारिणी॥

चन्द्रघण्टा (मणिपुर चक्र)

पिण्डजप्रवरारूढा चन्दकोपास्त्रकैर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्मं चन्द्रघण्देति विश्रुता ॥

ध्यान:-

वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

सिंहारूढादशभुजांचन्द्रघण्टायशस्वनीम्॥

कंचनाभांमणिपुर स्थितांतृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।

खंग गदा त्रिशूल चापहरंपदमकमण्डलु माला वराभीतकराम्।

पटाम्बरपरिधांनामृदुहास्यांनानालंकारभूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर किंकिणिरत्‍‌नकुण्डलमण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वंदना बिबाधाराकातंकपोलांतुंग कुचाम्।

कमनीयांलावण्यांक्षीणकंटिनितम्बनीम्॥

स्त्रोत:-

आपदुद्वारिणी स्वंहिआघाशक्ति: शुभा पराम्।

मणिमादिसिदिधदात्रीचन्द्रघण्टेप्रणभाम्यहम्॥

चन्द्रमुखीइष्टदात्री इष्ट मंत्र स्वरूपणीम्।

धनदात्रीआनंददात्रीचन्द्रघण्टेप्रणमाम्यहम्॥

नानारूपधारिणीइच्छामयीऐश्वर्यदायनीम्।

सौभाग्यारोग्यदायनीचन्द्रघण्टेप्रणमाम्यहम्॥

कवच:-रहस्यं श्रुणुवक्ष्यामिशैवेशीकमलानने।

श्री चन्द्रघण्टास्यकवचंसर्वसिद्धि दायकम्॥

बिना न्यासंबिना विनियोगंबिना शापोद्धारबिना होमं।

स्नानंशौचादिकंनास्तिश्रद्धामात्रेणसिद्धिदम्॥

कुशिष्यामकुटिलायवंचकायनिन्दाकायच।

न दातव्यंन दातव्यंपदातव्यंकदाचितम्॥

कूष्माण्डा (अनाहत चक्र)

सुरासम्पूर्णकलशंरुधिप्लूतमेवच।

दधानाहस्तपदमाभयांकूष्माण्डाशुभदास्तुमे॥

ध्यान:-

वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

सिंहरूढाअष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वनीम्॥

भास्वर भानु निभांअनाहत स्थितांचतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।

कमण्डलु चाप, बाण, पदमसुधाकलशचक्र गदा जपवटीधराम्॥

पटाम्बरपरिधानांकमनीयाकृदुहगस्यानानालंकारभूषिताम्।

मंजीर हार केयूर किंकिणरत्‍‌नकुण्डलमण्डिताम्।

प्रफुल्ल वदनांनारू चिकुकांकांत कपोलांतुंग कूचाम्।

कोलांगीस्मेरमुखींक्षीणकटिनिम्ननाभिनितम्बनीम्॥

स्त्रोत:-

दुर्गतिनाशिनी त्वंहिदारिद्रादिविनाशिनीम्।

जयंदाधनदांकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥

जगन्माता जगतकत्रीजगदाधाररूपणीम्।

चराचरेश्वरीकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥

त्रैलोक्यसुंदरीत्वंहिदु:ख शोक निवारिणाम्।

परमानंदमयीकूष्माण्डेप्रणमाम्यहम्॥

कवच:-

हसरै मेशिर: पातुकूष्माण्डेभवनाशिनीम्।

हसलकरींनेत्रथ,हसरौश्चललाटकम्॥

कौमारी पातुसर्वगात्रेवाराहीउत्तरेतथा।

पूर्वे पातुवैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणेमम।

दिग्दिधसर्वत्रैवकूंबीजंसर्वदावतु॥

स्कन्दमाता (विशुद्ध चक्र)

सिंहासनगतानित्यंपद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तुसदा देवी स्कन्दमातायशस्विनीम्॥

ध्यान:-

वन्दे वांछित कामर्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

सिंहारूढाचतुर्भुजास्कन्धमातायशस्वनीम्॥

धवलवर्णाविशुद्ध चक्रस्थितांपंचम दुर्गा त्रिनेत्राम।

अभय पदमयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधरामभजेम्॥

पटाम्बरपरिधानाकृदुहज्ञसयानानालंकारभूषिताम्।

मंजीर हार केयूर किंकिणिरत्नकुण्डलधारिणीम।।

प्रभुल्लवंदनापल्लवाधरांकांत कपोलांपीन पयोधराम्।

कमनीयांलावण्यांजारूत्रिवलींनितम्बनीम्॥

स्तोत्र:-

नमामि स्कन्धमातास्कन्धधारिणीम्।

समग्रतत्वसागरमपारपारगहराम्॥

शिप्रभांसमुल्वलांस्फुरच्छशागशेखराम्।

ललाटरत्‍‌नभास्कराजगतप्रदीप्तभास्कराम्॥

महेन्द्रकश्यपाíचतांसनत्कुमारसंस्तुताम्।

सुरासेरेन्द्रवन्दितांयथार्थनिर्मलादभुताम्॥

मुमुक्षुभिíवचिन्तितांविशेषतत्वमूचिताम्।

नानालंकारभूषितांकृगेन्द्रवाहनाग्रताम्।।

सुशुद्धतत्वातोषणांत्रिवेदमारभषणाम्।

सुधाíमककौपकारिणीसुरेन्द्रवैरिघातिनीम्॥

शुभांपुष्पमालिनीसुवर्णकल्पशाखिनीम्।

तमोअन्कारयामिनीशिवस्वभावकामिनीम्॥

सहस्त्रसूर्यराजिकांधनज्जयोग्रकारिकाम्।

सुशुद्धकाल कन्दलांसुभृडकृन्दमज्जुलाम्॥

प्रजायिनीप्रजावती नमामिमातरंसतीम्।

स्वकर्मधारणेगतिंहरिप्रयच्छपार्वतीम्॥

इनन्तशक्तिकान्तिदांयशोथमुक्तिदाम्।

पुन:पुनर्जगद्धितांनमाम्यहंसुराíचताम॥

जयेश्वरित्रिलाचनेप्रसीददेवि पाहिमाम्॥

कवच:-

ऐं बीजालिंकादेवी पदयुग्मधरापरा।

हृदयंपातुसा देवी कातिकययुता॥

श्रींहीं हुं ऐं देवी पूर्वस्यांपातुसर्वदा।

सर्वाग में सदा पातुस्कन्धमातापुत्रप्रदा॥

वाणवाणामृतेहुं फट् बीज समन्विता।

उत्तरस्यातथाग्नेचवारूणेनेत्रतेअवतु॥

इन्द्राणी भैरवी चैवासितांगीचसंहारिणी।

सर्वदापातुमां देवी चान्यान्यासुहि दिक्षवै॥

कात्यायनी (आज्ञाचक्र)

चन्द्रहासोज्वलकराशार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभ दधादेवी दानवघातिनी॥

ध्यान:-

वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥

स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।

वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥

पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।

मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्।।

प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।

कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥

स्तोत्र:-

कंचनाभां कराभयंपदमधरामुकुटोज्वलां।

स्मेरमुखीशिवपत्नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।

सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।

परमशक्ति,परमभक्ति्कात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता।

विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥

कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।

कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥

कांकारहíषणीकां धनदाधनमासना।

कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥

कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।

कां कीं कूंकै क:ठ:छ:स्वाहारूपणी॥

कवच:-

कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।

लाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य संदरी॥

कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥

कालरात्रि (भानु चक्र)

एकवेणीजपाकर्णपुरानाना खरास्थिता।

लम्बोष्ठीकíणकाकर्णीतैलाभ्यशरीरिणी॥

वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।

वर्धनर्मूध्वजाकृष्णांकालरात्रिभर्यगरी॥

ध्यान:-

करालवदनां घोरांमुक्तकेशींचतुर्भुताम्।

कालरात्रिंकरालिंकादिव्यांविद्युत्मालाविभूषिताम्॥

दिव्य लौहवज्रखड्ग वामाघो‌र्ध्वकराम्बुजाम्।

अभयंवरदांचैवदक्षिणोध्र्वाघ:पाणिकाम्॥

महामेघप्रभांश्यामांतथा चैपगर्दभारूढां।

घोरदंष्टाकारालास्यांपीनोन्नतपयोधराम्॥

सुख प्रसन्न वदनास्मेरानसरोरूहाम्।

एवं संचियन्तयेत्कालरात्रिंसर्वकामसमृद्धिधदाम्॥

स्तोत्र:-

हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती।

कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥

कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी।

कुमतिघन्ीकुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥

क्लींहीं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी।

कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥

कवच:-

ॐ क्लींमें हदयंपातुपादौश्रींकालरात्रि।

ललाटेसततंपातुदुष्टग्रहनिवारिणी॥

रसनांपातुकौमारी भैरवी चक्षुणोर्मम

कहौपृष्ठेमहेशानीकर्णोशंकरभामिनी।

íजतानितुस्थानाभियानिचकवचेनहि।

तानिसर्वाणिमें देवी सततंपातुस्तम्भिनी॥

महागौरी (सोमचक्र)

श्र्वेते वृषे समारूढा श्र्वेताम्बरधरा शुचिः ।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ॥

ॐ नमो: भगवती महागौरीवृषारूढेश्रींहीं क्लींहूं फट् स्वाहा।

भगवती महागौरीवृषभ के पीठ पर विराजमान हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्र का मुकुट है। मणिकान्तिमणि के समान कान्ति वाली अपनी चार भुजाओं में शंख, चक्र, धनुष और बाण धारण किए हुए हैं, जिनके कानों में रत्नजडितकुण्डल झिलमिलाते हैं, ऐसी भगवती महागौरीहैं।

ध्यान:-

वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्॥

पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्रस्थिातांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।

वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्॥

पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।

मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचैवोक्यमोहनीम्।

कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्॥

स्तोत्र:-

सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।

ज्ञानदाचतुर्वेदमयी,महागौरीप्रणमाम्यहम्॥

सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।

डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्॥

त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।

वरदाचैतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्॥

कवच:-

ओंकार: पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां हृदयो।

क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥

ललाट कर्णोहूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।

कपोल चिबुकोफट् पातुस्वाहा मां सर्ववदनो॥

सिद्धिदात्री (निर्वाण चक्र)

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि ।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धीदा सिद्धीदायिनी ॥

ध्यान:-

वन्दे वांछित मनरोरार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।

कमलस्थिताचतुर्भुजासिद्धि यशस्वनीम्॥

स्वर्णावर्णानिर्वाणचक्रस्थितानवम् दुर्गा त्रिनेत्राम।

शंख, चक्र, गदा पदमधरा सिद्धिदात्रीभजेम्॥

पटाम्बरपरिधानांसुहास्यानानालंकारभूषिताम्।

मंजीर, हार केयूर, किंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वदनापल्लवाधराकांत कपोलापीनपयोधराम्।

कमनीयांलावण्यांक्षीणकटिंनिम्ननाभिंनितम्बनीम्॥

स्तोत्र:-

कंचनाभा शंखचक्रगदामधरामुकुटोज्वलां।

स्मेरमुखीशिवपत्नीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।

नलिनस्थितांपलिनाक्षींसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

परमानंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।

परमशक्ति,परमभक्तिसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

विश्वकतींविश्वभर्तीविश्वहतींविश्वप्रीता।

विश्वíचताविश्वतीतासिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

भुक्तिमुक्तिकारणीभक्तकष्टनिवारिणी।

भवसागर तारिणी सिद्धिदात्रीनमोअस्तुते।।

धर्माथकामप्रदायिनीमहामोह विनाशिनी।

मोक्षदायिनीसिद्धिदात्रीसिद्धिदात्रीनमोअस्तुते॥

कवच:-

ओंकार: पातुशीर्षोमां, ऐं बीजंमां हृदयो।

हीं बीजंसदापातुनभोगृहोचपादयो॥

ललाट कर्णोश्रींबीजंपातुक्लींबीजंमां नेत्र घ्राणो।

कपोल चिबुकोहसौ:पातुजगत्प्रसूत्यैमां सर्व वदनो॥





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